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श्रीनिवास रथ (1933–2014): उज्जैन की विद्वत परंपरा का गौरवशाली स्तंभ

उज्जैन, जो महाकाल की नगरी के साथ-साथ ज्ञान, विद्या और संस्कृति की पावन भूमि है, ने अनेक महान विद्वानों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक थे श्रीनिवास रथ, जो संस्कृत साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वान, कवि, आलोचक और शिक्षक थे। उनका संपूर्ण जीवन संस्कृत भाषा, भारतीय दर्शन और साहित्यिक परंपरा को समर्पित रहा। उनका कार्य न केवल उज्जैन बल्कि पूरे भारत के लिए सांस्कृतिक धरोहर है।

🌟 जीवन परिचय 🌟
श्रीनिवास रथ जी का जन्म वर्ष 1933 में हुआ। उन्होंने अपने जीवनकाल में संस्कृत साहित्य के उत्थान के लिए अद्वितीय योगदान दिया। उनका व्यक्तित्व सृजनात्मक प्रतिभा, शोध की गहराई और शिक्षा के प्रति समर्पण का अद्भुत उदाहरण था। श्रीनिवास रथ जी ने उज्जैन की विद्वत परंपरा को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।

📚 साहित्यिक योगदान 📚

1. महान कवि और लेखक:
श्रीनिवास रथ जी ने संस्कृत में अनेक रचनाएँ कीं, जिनमें कविता, निबंध और आलोचनात्मक लेखन शामिल हैं। उनकी रचनाएँ वेदों, उपनिषदों और भारतीय परंपरा की गहन समझ का प्रमाण हैं।

2. आधुनिक और परंपरागत साहित्य का संगम:
उनकी रचनाओं में संस्कृत साहित्य के प्राचीन स्वरूप के साथ-साथ आधुनिक चिंतन का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

3. संस्कृत आलोचना में योगदान:
श्री रथ जी ने संस्कृत साहित्य की आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके द्वारा की गई आलोचनाएं विवेकशीलता, तथ्यात्मकता और सटीक व्याख्या के लिए जानी जाती हैं।

4. शिक्षा और संस्कृत का प्रचार-प्रसार:
श्रीनिवास रथ जी एक कुशल शिक्षक भी थे। उन्होंने अपने शिक्षण कार्य के माध्यम से नई पीढ़ी को संस्कृत अध्ययन और भारतीय परंपरा की ओर प्रेरित किया। उनके मार्गदर्शन में कई छात्र संस्कृत के विद्वान बने।

5. संस्कृत नाटकों और काव्य का पुनर्जागरण:
उनकी लेखनी में संस्कृत नाटकों और महाकाव्यों का जीवंत चित्रण देखने को मिलता है। उनके कार्यों ने भारतीय साहित्य को नई दिशा और पहचान दी।

🌸 श्रीनिवास रथ जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए, हम उन्हें उज्जैन की सांस्कृतिक धरोहर के अमूल्य स्तंभ के रूप में सदैव स्मरण करेंगे। 🌸

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