“चलो, फिर से मुस्कुराएं, गीत गाएं, गुनगुनाएं।”
उज्जैन की धरती ने हमें अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक विभूतियों से समृद्ध किया है। इन्हीं में से एक हैं, पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी, हिंदी साहित्य के युगपुरुष, जिनकी काव्यधारा ने करोड़ों दिलों को छुआ। उनका जीवन साहित्य, समाज और राष्ट्र के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी का जीवन परिचय
डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के भागवतपुर गांव में हुआ। लेकिन उनकी साहित्यिक यात्रा का गहरा संबंध उज्जैन से रहा। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं और इस नगरी को अपने साहित्यिक योगदान से अमूल्य धरोहर सौंपी।
उन्होंने हिंदी साहित्य को कई अमूल्य काव्य संग्रह दिए, जिनमें प्रमुख हैं:
– हिल्लोल
– जीवन के गान
– विश्वास बढ़ता ही गया
– प्रलय-सृजन
पुरस्कार और सम्मान
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें शामिल हैं:
– पद्मभूषण (1974)
– साहित्य अकादमी पुरस्कार
– सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
– शिखर सम्मान (मध्य प्रदेश सरकार द्वारा)
सुमन जी के विचार और प्रेरणा
उनकी कविताएं जीवन के संघर्षों से जूझने और हर परिस्थिति में आशा और उत्साह बनाए रखने का संदेश देती हैं। उनका यह अमर संदेश हर किसी के दिल को छू जाता है:
“वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है।
थक कर बैठ गए क्या भाई, मंज़िल दूर नहीं है।”
उज्जैन का गौरव
डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी ने उज्जैन को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष पहचान दिलाई। उनके नेतृत्व में विक्रम विश्वविद्यालय ने शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छुआ।
डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी ने अपने साहित्य और विचारों से न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज को नई दिशा दी। उनका जीवन और कृतित्व हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने कार्यों से समाज और राष्ट्र का उत्थान करें।
“चलो, फिर से दीप्त करें उज्जैन की इस गौरवशाली विभूति की स्मृति।” 🙏✨