उज्जैन, भगवान महाकाल की पावन नगरी, जहाँ हर गली, हर चौक इतिहास और परंपरा से जुड़ा हुआ है। इस ऐतिहासिक शहर में एक समय था जब टेम्पो सफर का सबसे लोकप्रिय और सुलभ साधन हुआ करता था। हालाँकि अब ये टेम्पो सड़कों से गायब हो चुके हैं, लेकिन उज्जैनवासियों की यादों में आज भी इनका एक खास स्थान है।
जब टेम्पो थे उज्जैन की पहचान
🔹सस्ता और सुलभ साधन – उज्जैन में एक दौर था जब टेम्पो यात्रा का सबसे किफायती और सुविधाजनक विकल्प हुआ करते थे।
🔹हर गली-चौराहे पर टेम्पो की आवाज़ – महाकाल मंदिर, टॉवर चौक, देवास गेट, फ्रीगंज, नानाखेड़ा, रेलवे स्टेशन – हर जगह ये टेम्पो यात्रियों से भरे रहते थे।
🔹साझा सफर, साझा अपनापन – एक ही टेम्पो में अजनबी भी कुछ मिनटों के सफर में अपनी बातें और मुस्कान साझा कर लिया करते थे।
टेम्पो की अनोखी यादें
🚖 “थोड़ा खिसकिए भैया!” – टेम्पो में बैठते ही यह वाक्य सुनना आम था। लोग थोड़ी-सी जगह बनाकर औरों को बैठाने में खुशी महसूस करते थे।
🚖 फिल्मी गानों और भजनों की गूंज – कुछ टेम्पो में जहां पुराने हिंदी गाने बजते थे, वहीं कुछ में हनुमान चालीसा और शिव भजन सुनाई देते थे।
🚖 टेम्पो की रफ्तार और स्टाइल – उज्जैन की गलियों में तेज़ी से चलते टेम्पो और उनका ज़रा झुककर टर्न लेना किसी रोमांच से कम नहीं था!
अब टेम्पो सिर्फ यादों में
समय के साथ उज्जैन की सड़कें बदलीं, यातायात के नए साधन आए और धीरे-धीरे टेम्पो शहर से लुप्त हो गए। हालाँकि, आज भी जब कोई पुरानी तस्वीरें देखता है या टेम्पो का जिक्र होता है, तो मन में वो दिन ताज़ा हो जाते हैं।
उज्जैन के टेम्पो – एक सुनहरी याद
भले ही अब टेम्पो सड़कों पर नज़र नहीं आते, लेकिन उज्जैनवासियों की यादों में वे हमेशा जिंदा रहेंगे। उनका सफर सिर्फ यात्रियों का सफर नहीं था, बल्कि उज्जैन की संस्कृति, अपनापन और सरलता का प्रतीक भी था।