कभी उज्जैन की सड़कों पर ताँगा (घोड़ा गाड़ी) आम लोगों के परिवहन का प्रमुख साधन हुआ करता था। यह सिर्फ यात्रा का जरिया नहीं था, बल्कि शहर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा भी था। श्रद्धालुओं, व्यापारियों, पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए यह एक आरामदायक, किफायती और सुहावना सफर हुआ करता था।
🔸ताँगा का स्वर्णिम युग
प्राचीन काल से लेकर 20वीं शताब्दी तक उज्जैन में ताँगा का खूब प्रचलन था। यह न केवल परिवहन का मुख्य साधन था, बल्कि यह शहर की गलियों, मंदिरों और घाटों की खूबसूरती को और अधिक आकर्षक बनाता था।
🔹महाकालेश्वर मंदिर से रामघाट तक – ताँगा यात्रा का सबसे लोकप्रिय मार्ग हुआ करता था। श्रद्धालु महाकाल बाबा के दर्शन के बाद रामघाट जाने के लिए ताँगा में बैठकर अपने गंतव्य तक पहुंचते थे।
🔹 बाजारों में व्यापारियों की पहली पसंद – गोपाल मंदिर, फव्वारा चौक, दौलतगंज, और रीगल टॉकीज जैसे व्यस्त बाजारों तक पहुँचने के लिए व्यापारी और ग्राहक ताँगा का उपयोग करते थे।
🔹 राजसी शान का प्रतीक – पुराने समय में कुछ ताँगा खास सजावट और नक्काशीदार लकड़ी के ढांचे के साथ शाही परिवारों और धनी व्यापारियों के लिए होते थे। उन्हें “बग्घी” कहा जाता था, जो विवाह समारोहों और विशेष आयोजनों के लिए इस्तेमाल की जाती थी।
🔸उज्जैन के ताँगा की खासियतें
घोड़ों की सुंदरता और ट्रेनिंग – उज्जैन के ताँगा में उपयोग किए जाने वाले घोड़े खासतौर पर प्रशिक्षित होते थे, जिन्हें सजी-धजी झंकारियों और रंग-बिरंगी साज-सज्जा के साथ सजाया जाता था।
सस्ता और सुविधाजनक सफर – ऑटो और बसों की तुलना में यह काफी सस्ता था, इसलिए आम जनता भी आसानी से इसका उपयोग कर सकती थी।
विशेष अवसरों पर ताँगा यात्रा – पुराने समय में विवाह, धार्मिक जुलूसों, और खास आयोजनों के लिए ताँगा का प्रयोग किया जाता था।
🔸आधुनिकता के साथ ताँगा का पतन
जैसे-जैसे शहर में सड़कों का विस्तार हुआ और ऑटो, बस, कार और ई-रिक्शा जैसी सुविधाएँ बढ़ीं, वैसे-वैसे ताँगा धीरे-धीरे गायब होने लगे।
🔸आज के उज्जैन में ताँगा की स्थिति
हालांकि उज्जैन में ताँगा का चलन लगभग समाप्त हो गया है,
✨क्या आपने भी कभी उज्जैन के ताँगा में सफर किया है?
अगर हां, तो अपने अनुभव हमें कमेंट में जरूर बताएं! 🚋🙏