उज्जैन की पावन धरा पर अनेक महान साहित्यकारों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज को नई दिशा दी। उन्हीं में से एक थे पंडित ओम व्यास ‘ओम’ जी। वे केवल एक कवि नहीं, बल्कि हास्य-व्यंग्य के अप्रतिम हस्ताक्षर थे, जिनकी रचनाएँ समाज की कड़वी सच्चाइयों को हल्के-फुल्के अंदाज में प्रस्तुत करती थीं।
🎤 कवि सम्मेलनों के चमकते सितारे
🔹 पंडित ओम व्यास ‘ओम’ जी ने अपनी अनोखी शैली से हिंदी काव्य मंचों पर अमिट छाप छोड़ी।
🔹 उनकी प्रस्तुति में सहजता, व्यंग्य और प्रभावशाली शब्दों का ऐसा मिश्रण था, जो श्रोताओं को हँसाने के साथ-साथ गहराई से सोचने पर मजबूर कर देता था।
🔹 वे अपने प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य के अंदाज में राजनीति, समाज की विसंगतियों और मानवीय व्यवहार पर कटाक्ष करते थे।
📜 उनकी कालजयी रचनाएँ
✅ “कभी नहीं, कभी नहीं” – यह कविता आज भी सोशल मीडिया और मंचों पर गूंजती है, जिसमें उन्होंने समाज की कड़वी सच्चाइयों को हास्य के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
✅ “माँ” – इस मार्मिक कविता में उन्होंने माँ के त्याग और ममता को शब्दों में पिरोया है, जो हर व्यक्ति के दिल को छू जाती है।
✅ “पिता” – इस कविता में पिता के संघर्ष और समर्पण को जिस भावुक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है, वह हर संतान को सोचने पर मजबूर कर देता है।
📍 उज्जैन से विशेष लगाव
🔸 ओम व्यास जी ने उज्जैन को अपनी कर्मभूमि बनाया।
🔸 यहाँ रहकर उन्होंने हिंदी साहित्य और काव्य मंचों को नई ऊँचाइयाँ दीं।
🔸 उनका उज्जैन से विशेष प्रेम था, और उन्होंने इसे अपनी पहचान का हिस्सा बनाया।
⚫ दुखद निधन
😢 एक भीषण सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद, 8 जुलाई 2009 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
😢 उनकी असमय मृत्यु से साहित्य और काव्य मंचों को अपूरणीय क्षति हुई, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हमें हँसाती और सच्चाई से अवगत कराती हैं।
✨ उनकी विरासत अमर है!
पंडित ओम व्यास ‘ओम’ जी का योगदान हिंदी हास्य-व्यंग्य साहित्य में अमिट रहेगा। उनकी कविताएँ और मंचीय प्रस्तुतियाँ हमें यह सिखाती हैं कि हँसी केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि एक सशक्त माध्यम भी है, जो समाज को आईना दिखा सकती है।
🙏 ओम व्यास ‘ओम’ जी को श्रद्धांजलि! 🙏
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