उज्जैन, जिसे मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है, न केवल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ कई ऐसे पवित्र स्थल हैं, जो मोक्ष और आत्मशुद्धि से जुड़े हैं। सिद्धवट मंदिर उन्हीं में से एक है, जो विशेष रूप से पितृ तर्पण (तर्पण क्रिया) और श्राद्ध कर्म के लिए प्रसिद्ध है।
🔹 सिद्धवट मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
सिद्धवट मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है और इसका मुख्य आकर्षण यहाँ का प्राचीन वट वृक्ष (बरगद का पेड़) है, जिसे अत्यंत दिव्य और चमत्कारी माना जाता है।
📖 पौराणिक मान्यताओं के अनुसार
✔️ भगवान शिव ने माता पार्वती को सिद्धवट क्षेत्र को तीनों लोकों में मोक्ष प्रदान करने वाला स्थान बताया था।
✔️ ऐसा माना जाता है कि इस सिद्धवट क्षेत्र में श्राद्ध करने से गया श्राद्ध के समान पुण्य फल प्राप्त होता है।
✔️ यह अक्षयवट (प्रयागराज), बोधिवृक्ष (गया) और पंचवटी वट (नासिक) की तरह ही विशेष महत्व रखता है।
🔹 सिद्धवट मंदिर और तर्पण क्रिया का महत्व
🔸 पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म – यहाँ पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए विधिपूर्वक तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है।
🔸 तीर्थराज प्रयाग, गया और काशी के समान महत्व – ऐसा कहा जाता है कि सिद्धवट पर किया गया श्राद्ध कर्म गया श्राद्ध के समान पुण्यकारी होता है।
🔸 अस्थि विसर्जन और तर्पण – यहाँ कई श्रद्धालु अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
🔹 सिद्धवट मंदिर की विशेषताएँ
✔️ प्राचीन वट वृक्ष – इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यह विशाल वट वृक्ष है, जिसके बारे में कहा जाता है कि कई बार इसे काटने की कोशिश की गई, लेकिन यह पुनः विकसित हो गया। यह इसकी दिव्यता और शक्ति का प्रतीक है।
✔️ क्षिप्रा नदी का पवित्र तट – सिद्धवट मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है, जहाँ स्नान करने और तर्पण करने का विशेष महत्व है।
✔️ श्राद्ध पक्ष में विशेष अनुष्ठान – भाद्रपद माह (सितंबर-अक्टूबर) में आने वाले पितृ पक्ष के दौरान यहाँ हजारों श्रद्धालु श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण के लिए आते हैं।
✔️ अनुष्ठानों का केंद्र – यहाँ विशेष रूप से महामृत्युंजय जाप किए जाते हैं।
💠 आइए, सिद्धवट पर पिंडदान व तर्पण कर अपने पितरों को तृप्त करें और मोक्ष प्राप्ति का पुण्य लाभ लें। 💠
🔱 हर हर महादेव! 🔱