भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर में विक्रम संवत का विशेष स्थान है। यह न केवल एक पंचांग आधारित कालगणना पद्धति है, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपराओं और ज्योतिष विज्ञान से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। विक्रम संवत की स्थापना महान सम्राट विक्रमादित्य ने की थी, जिनका नाम ही इस संवत का आधार बना। यह संवत 57 ईसा पूर्व से प्रारंभ हुआ और आज भी भारतीय समाज में धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
📜 विक्रम संवत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सम्राट विक्रमादित्य, जो उज्जैन के प्रतापी शासक थे, ने शकों (विदेशी आक्रमणकारियों) पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में इस संवत की शुरुआत की। उनकी शासनकाल में उज्जैन केवल एक राजनीतिक केंद्र ही नहीं, बल्कि खगोलशास्त्र, गणित, साहित्य और कला का भी प्रमुख केंद्र था। इसी कारण उज्जैन को भारत का “कालगणना केंद्र” कहा जाता है।
🔭 विक्रम संवत और भारतीय पंचांग
विक्रम संवत भारतीय चंद्र-सौर पंचांग पर आधारित है, जिसमें तिथियाँ, पर्व और धार्मिक अनुष्ठान चंद्रमा और सूर्य की गतियों के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं। यह संवत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होता है, जिसे नव संवत्सर (हिंदू नववर्ष) के रूप में मनाया जाता है।
🏛 विक्रम संवत का उज्जैन से विशेष संबंध
उज्जैन, जो प्राचीन काल से ही खगोलशास्त्र और गणित का प्रमुख केंद्र रहा है, विक्रम संवत का प्रमुख आधार रहा है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की नगरी उज्जैन में स्थित जंतर मंतर (वेधशाला) में आज भी खगोलीय गणनाएँ की जाती हैं, जिनका आधार प्राचीन भारतीय पंचांग और विक्रम संवत ही है।
🕉 संस्कृति और परंपरा का प्रतीक
विक्रम संवत केवल एक तिथि गणना पद्धति नहीं, बल्कि भारतीय परंपराओं, ज्योतिष और संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह भारत की समृद्ध परंपराओं का जीवंत प्रमाण है और हमें अपनी गौरवशाली विरासत से जोड़ता है।
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