उज्जैन का रीगल टॉकीज़, जो गोपाल मंदिर के ठीक सामने स्थित था, एक समय पर शहर का सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित सिनेमाघर था। यह सिर्फ एक सिनेमा हॉल नहीं था, बल्कि यह उज्जैन की सांस्कृतिक विरासत और मनोरंजन का केंद्र भी रहा है।
🔹रीगल टॉकीज़ का गौरवशाली अतीत
✅ स्थापना और लोकप्रियता:
रीगल टॉकीज़ की स्थापना 20वीं सदी के मध्य में हुई थी और यह कई दशकों तक उज्जैन के सबसे चर्चित सिनेमाघरों में से एक रहा।
✅ सुपरहिट फिल्मों का गवाह:
70, 80 और 90 के दशक में यहाँ कई सुपरहिट हिंदी फिल्में हाउसफुल चला करती थीं। खासकर “जय संतोषी माँ,” “बाई चाले सासरिये,” और “नदिया के पार” जैसी फिल्में यहाँ लंबे समय तक चलीं और दर्शकों ने इन्हें खूब सराहा।
✅ परिवारों और दोस्तों की पसंद:
यहां फिल्म देखना एक अनुभव हुआ करता था – सिंगल स्क्रीन थिएटर, बड़े पर्दे पर सिनेमा का जादू, रौनक भरा माहौल, और इंटरवल में मिलने वाले स्वादिष्ट समोसे-कोल्ड ड्रिंक्स!
🔹रीगल टॉकीज़ और गोपाल मंदिर क्षेत्र
रीगल टॉकीज़ की लोकेशन गोपाल मंदिर के ठीक सामने थी, जो इस क्षेत्र को और भी ऐतिहासिक और व्यस्त बनाती थी।
👉 सिनेमाघर के बाहर चहल-पहल:
• फिल्म शुरू होने से पहले और इंटरवल में गर्मागरम चाय, समोसे और मूंगफली खाने का अलग ही मज़ा था।
• मंदिर आने वाले श्रद्धालु भी यहाँ की चहल-पहल का हिस्सा बनते थे।
• आसपास के बाजारों में हमेशा भीड़ लगी रहती थी, जिससे यह क्षेत्र हमेशा जिंदादिल और व्यस्त बना रहता था।
🔹रीगल टॉकीज़ का अस्तित्व अब केवल यादों में
समय के साथ मल्टीप्लेक्स और डिजिटल मनोरंजन के बढ़ते प्रभाव के कारण उज्जैन के कई पुराने सिनेमाघरों की तरह रीगल टॉकीज़ भी बंद हो गया। लेकिन यह आज भी लोगों की यादों में ज़िंदा है – वह गर्मियों की छुट्टियों में परिवार संग फिल्म देखने जाना, दोस्तों के साथ सस्ते टिकट में फिल्म देखना और क्लासिक हिंदी फिल्मों की शानदार स्क्रीनिंग!
💬 क्या आपको याद हैं रीगल टॉकीज़ के सुनहरे दिन?
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