राजा भाऊ महाकाल का नाम उज्जैन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रेरणा के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। 26 जनवरी 1923 को उज्जैन में महाकाल मंदिर के पुजारी परिवार में जन्मे राजाभाऊ महाकाल का जीवन भारत के स्वाधीनता संग्राम के महान नायक के रूप में प्रस्तुत होता है।
1. महाकाल की नगरी में जन्म
उज्जैन में जन्मे राजाभाऊ की महाकाल के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति रही, जो उनके जीवन का आधार बनी।
2. संघ का प्रचारक जीवन
1942 में संघ के प्रचारक बने और सोनकच्छ तहसील में साहसिक कार्य किए, जहां उन्होंने कई संकटों का सामना किया।
3. 1948 के प्रतिबंध काल में संघर्ष
1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने के बावजूद, राजाभाऊ ने सोनकच्छ में होटल खोलकर कार्यकर्ताओं के लिए मिलन स्थल प्रदान किया।
4. गोवा मुक्ति आंदोलन में भागीदारी
1955 में, जब गोवा की मुक्ति के लिए आंदोलन शुरू हुआ, तो राजाभाऊ महाकाल ने उज्जैन के जत्थे का नेतृत्व किया। तिरंगा लेकर सबसे आगे बढ़ते हुए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाई। उन्हें गोली लगी, लेकिन उनका संघर्ष जारी रहा।
जब सत्याग्रहियों ने सीमा पार की, तो पुर्तगाली सैनिकों ने गोलियां चलाईं, राजाभाऊ महाकाल ने न केवल अपनी जान की बाजी लगाई, बल्कि तिरंगे झंडे के साथ सबसे आगे बढ़ते रहे। अंत में, उन्हें सिर में गोली लगी, जिससे उनकी आंख और सिर से रक्त बहने लगा। वे मूर्छित हो गए, लेकिन जब भी होश आता, तो वे सबसे पहले यह पूछते कि “सत्याग्रह कैसे चल रहा है? क्या गोवा स्वतंत्र हुआ?”
5. बलिदान और अंतिम संस्कार
चिकित्सकों के प्रयासों के बावजूद, वे बच नहीं सके और उनका निधन हो गया। उनके बलिदान और उनकी शहादत के बाद, उनकी अस्थियों को पुणे लाया गया और वहां उनका अंतिम संस्कार हुआ। प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी थी, लेकिन नगरवासियों ने इस प्रतिबंध को तोड़ते हुए एक भव्य शोभायात्रा निकाली, जिसमें उनके चित्र को हाथी पर रखा गया और अस्थिकलश को बग्घी में रखा गया। अंत में, उनकी अस्थियों को पवित्र क्षिप्रा नदी में विसर्जित किया गया।
राजाभाऊ महाकाल का जीवन न केवल धर्म और देश के प्रति समर्पण का प्रतीक था, बल्कि उन्होंने अपने संघर्षों और बलिदान से यह सिद्ध कर दिया कि एक सच्चा स्वयंसेवक अपने देश और ध्वज के लिए कुछ भी कर सकता है। उनका बलिदान हमारे लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहेगा।
राजाभाऊ महाकाल को शत-शत नमन। 🙏