उज्जैन, जिसे भारतीय संस्कृति और साहित्य का तीर्थस्थल कहा जाता है, ने कालिदास अकादमी के रूप में एक ऐसी संस्था को जन्म दिया, जिसने भारतीय परंपरा, कला और साहित्य को अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचाया। इस अकादमी के पहले निदेशक प्रो. आद्या रंगाचार्य न केवल एक विद्वान बल्कि भारतीय नाट्यशास्त्र और संस्कृति के प्रखर संरक्षक थे।
प्रो. आद्या रंगाचार्य, जिनका असली नाम रङ्गनाथ रामचंद्र राजोपाध्याय था, संस्कृत साहित्य और नाट्यशास्त्र के गहन अध्येता थे। उन्होंने न केवल कालिदास जैसे महान कवि की कृतियों को नई पीढ़ी तक पहुँचाया, बल्कि भारतीय नाट्यशास्त्र के शास्त्रीय स्वरूप को आधुनिक समय के संदर्भ में पुनः परिभाषित किया।
उनके निर्देशन में कालिदास अकादमी ने विभिन्न शोध परियोजनाएँ, कला कार्यशालाएँ और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया। उनके प्रयासों के कारण कालिदास की कृतियों जैसे “अभिज्ञान शाकुंतलम्” और “मेघदूतम्” को वैश्विक साहित्य मंच पर नई पहचान मिली।
प्रो. रंगाचार्य का योगदान:
• कालिदास के साहित्य को आधुनिक युग में पुनर्जीवित करना।
• भारतीय नाट्य कला को शिक्षाविदों और कलाकारों के बीच लोकप्रिय बनाना।
• शोध और प्रशिक्षण के माध्यम से भारतीय संस्कृति को संरक्षित करना।
• कालिदास अकादमी को एक ऐसा मंच बनाना, जहाँ कला, साहित्य और परंपरा के विभिन्न आयामों पर कार्य किया जा सके।
उनकी दूरदृष्टि और समर्पण का परिणाम है कि आज कालिदास अकादमी भारतीय संस्कृति के अध्ययन और प्रचार-प्रसार का केंद्र बन चुकी है।
आइए, हम सब प्रो. आद्या रंगाचार्य के योगदान को स्मरण कर उनकी प्रेरणा से भारतीय कला और संस्कृति की सेवा का प्रण लें।
“भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार ही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है।”