महाकाल की पावन भूमि उज्जैन ने हमेशा अपनी संस्कृति, ज्ञान और महान विभूतियों के कारण गौरव प्राप्त किया है। इस पुण्य नगरी के बड़नगर कस्बे में 6 फरवरी 1915 को जन्मे कवि प्रदीप न केवल उज्जैन बल्कि पूरे देश का गौरव हैं। उनका असली नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था, लेकिन उनकी लेखनी ने उन्हें “कवि प्रदीप” के नाम से अमर कर दिया।
उज्जैन से कवि प्रदीप का जुड़ाव
• कवि प्रदीप का बचपन बड़नगर में बीता, जो उज्जैन जिले का हिस्सा है। यहीं उनकी शिक्षा हुई और उन्होंने संस्कृत और हिंदी साहित्य की गहराई को समझा।
• उज्जैन की सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक परिवेश ने उनकी लेखनी को प्रेरित किया। उनकी कविताओं और गीतों में उज्जैन की पवित्रता और देशभक्ति की भावना साफ झलकती है।
• उन्होंने अपनी पहली कविता बड़नगर में एक स्कूली कार्यक्रम में सुनाई, जिसे सुनकर हर कोई उनकी प्रतिभा का कायल हो गया।
कवि प्रदीप की अमर रचनाएँ
“ऐ मेरे वतन के लोगों” जैसे गीत ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम और सैनिकों के बलिदान को अमर कर दिया। उनके गीतों में माटी की सोंधी खुशबू और देशभक्ति का अमिट जज्बा है।
• अन्य प्रसिद्ध गीत:
o चल अकेला, चल अकेला…”
o हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के…”
o दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल…”
कवि प्रदीप का योगदान और सम्मान
• कवि प्रदीप ने न केवल फिल्मों के लिए गीत लिखे बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना जगाने का कार्य भी किया।
• उन्हें 1997 में मरणोपरांत दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान है।
• उज्जैन में उनकी स्मृति को संजोने के लिए समय-समय पर साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
उज्जैन को कवि प्रदीप पर गर्व है
कवि प्रदीप ने अपने गीतों और कविताओं के माध्यम से न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया, बल्कि देश की संस्कृति और मूल्यों को भी जन-जन तक पहुँचाया। उनका जीवन उज्जैन की माटी की सच्ची प्रतिभा और महिमा का प्रतीक है। उनकी रचनाएँ हमें आज भी प्रेरित करती हैं और हर भारतीय को देशभक्ति के प्रति जागरूक करती हैं।
🙏 आइए, इस महान कवि को याद करें और उनके योगदान को सलाम करें। उज्जैन की इस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाएं। 🙏