उज्जैन, महाकाल की पावन नगरी, जहाँ हर परंपरा अपने आप में एक आध्यात्मिक रहस्य समेटे हुए है। ऐसी ही एक अनूठी परंपरा है “कंडों की होली”, जिसे विशेष रूप से सिंहपुरी क्षेत्र में मनाया जाता है। इस ऐतिहासिक परंपरा का संरक्षण और निर्वाह ब्राह्मण परिवारों द्वारा किया जा रहा है, जो इसे पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं।
क्यों खास है सिंहपुरी का होलिका दहन?
📌 गाय के कंडों से निर्मित होलिका – यहाँ लकड़ी के स्थान पर कंडों का उपयोग किया जाता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ धार्मिक दृष्टि से भी यह परंपरा अत्यंत शुभ मानी जाती है।
📌 होलिका दहन और ध्वज का चमत्कार – सिंहपुरी में होलिका के ऊपर एक ध्वज (झंडा) लगाया जाता है, जिसे दहन के समय अग्नि स्पर्श करती है, लेकिन वह ध्वज जलता नहीं है! यह घटना हर वर्ष देखने को मिलती है और इसे ईश्वरीय शक्ति का प्रमाण माना जाता है।
📌 ब्राह्मण परिवारों द्वारा निर्वाह – इस दिव्य परंपरा को ब्राह्मण परिवारों द्वारा संजोया गया है, जो धार्मिक विधियों और नियमों का पूर्ण पालन करते हुए शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन संपन्न कराते हैं।
होलिका दहन का आध्यात्मिक महत्व
🔥 विशेष अनुष्ठान और पूजा –
• सबसे पहले कंडों की होली सजाई जाती है।
• इसके ऊपर ध्वज स्थापित किया जाता है।
• दहन से पहले श्रद्धालु होलिका की पूजा करते हैं।
• इसमें गाय के कंडों, गंगाजल, नारियल, गुड़, हल्दी और अन्य पवित्र सामग्री से हवन किया जाता है।
• ब्राह्मण परिवार के सदस्य वैदिक मंत्रोच्चार के साथ होलिका दहन की प्रक्रिया पूरी कराते हैं।
🔥 पर्यावरण संरक्षण का संदेश – लकड़ी के बजाय गाय के उपलों के उपयोग से वृक्षों की कटाई रोकी जाती है और वातावरण शुद्ध होता है।
उज्जैनवासियों और श्रद्धालुओं से अनुरोध
आइए, इस अद्भुत और चमत्कारी सिंहपुरी होलिका दहन का साक्षी बनें और इस धार्मिक आस्था और ईश्वरीय कृपा को अनुभव करें। यह पर्व हमें धर्म, श्रद्धा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
🌸 ” कंडों की होली!” 🌸