उज्जैन, जो स्वयं भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का एक जीवंत उदाहरण है, ने डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर जैसे महान पुरातत्वविद् को जन्म दिया। उनका जीवन और कार्य केवल उज्जैन ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव की बात है।
उज्जैन से उनका संबंध:
डॉ. वाकणकर का जन्म 4 मई 1919 को हुआ। उन्होंने उज्जैन में शिक्षा ग्रहण की और अपने प्रारंभिक जीवन में ही इतिहास, कला, और संस्कृति के प्रति गहन रुचि विकसित की। उज्जैन की ऐतिहासिकता और समृद्ध विरासत ने उनके पुरातात्विक दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया।
उनकी महान उपलब्धि – भीमबेटका की खोज:
डॉ. वाकणकर को भीमबेटका की शैलाश्रयों की खोज के लिए जाना जाता है, जो मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित हैं। इन गुफाओं में प्रागैतिहासिक चित्रकला और मानव सभ्यता के शुरुआती प्रमाण मिलते हैं। यह खोज भारतीय इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई और आज भी दुनिया भर के शोधकर्ताओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
उज्जैन के लिए योगदान:
डॉ. वाकणकर ने उज्जैन के प्राचीन मंदिरों, शिलालेखों, और स्थापत्य कला पर गहन शोध किया। उन्होंने यहां की ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने और उसे विश्व पटल पर प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उज्जैन के पास स्थित कई पुरातात्विक स्थलों पर भी उन्होंने काम किया, जिससे क्षेत्र के इतिहास को नई दिशा मिली।
पुरस्कार और सम्मान:
डॉ. वाकणकर को उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए 1975 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उनके जीवनभर के शोध और भारतीय संस्कृति के उत्थान में उनके योगदान का प्रमाण है।
उनकी विरासत:
आज, डॉ. वाकणकर के नाम पर उज्जैन में कई संस्थान और शोध केंद्र स्थापित हैं। उनके कार्यों को संरक्षण देने और आगे बढ़ाने के लिए स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास हो रहे हैं।
स्मरण:
डॉ. वाकणकर के जीवन और कार्य को याद करते हुए, हम उनके योगदान को नमन करते हैं। उज्जैन की यह ऐतिहासिक भूमि, जिसने उन्हें प्रेरित किया, आज उनके कार्यों की गवाही देती है।
“डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर – उज्जैन का वह सितारा, जिसने भारतीय इतिहास को रोशन किया।”